Thursday, May 27, 2010

bhgwa rang main talibaani farmaan....!

इतहास के पन्नो को अगर पलट कर देखा जाये, तो धरम कोई भी हो, औरत को बड़ा महत्व दिया गया है, फिर भी न जाने क्यों औरत को ऐसा लगता है की यह उसकी आजादी में खलल है, यह उसकी आजादी छीनना जेसी कोई बात है, और औरत को कमज़ोर समझा जाता है, ऐसा अकेली औरत के साथ ही नहीं है, कमज़ोर तो हर उस इंसान को समझा जाता है जिस के पास ताक़त नहीं है, अगर ताक़त नहीं है तो वोह कमज़ोर है और ताक़तवर उस को दबा ता चला जाये गा, ऐसा सिर्फ औरत के लिए नहीं है, करीब १४०० साल पहले जब कुरान इस ज़मीन पर आया, तो उस मैं हर तरह की बात बताई गई, न के सिर्फ जिहाद, कुरान दरअसल एक रूहानी किताब है जिस को अल्लाह ने इसलिए भेजा के इंसान उस किताब के ज़रिये अपने ज़िन्दगी को बेहतर ढंग से गुज़र सके, न के जीहलत और जानवर बन के, बच्चा जब पहली जमात में अता, है तब उस को (ABC) पढाई जाती है, सिंखाना शुरू करा जाता है, और धीरे धीरे वोह जमातें पढ़ता जाता और उस (ABC) से वोह दुनिया की हर वोह जानकारी हासिल करता है , जो वोह जानना चाहता है यह वोह जो नहीं जनता है,वोह उस पढ़ी हुई कितबों का सही इस्तेमाल भी करता है और बुराई मैं भी उस का इस्तेमाल करता है, बच्चे के पहली जमात से आखिरी जमात तक अच्छा और नेक इंसान बन्ने की नसीहतें दी जाती है, इस ही लिए उस को पढाया जाता है इन्सान बनाया जाता है, कुरान अपने आप में पैदा होने से से लेकर ज़िन्दगी की आखरी लम्हे तक की किताब है, जिस मैं वोह हार वोह चीज़ सिखा ता है जो इंसान को बेहतर बना ने के लिए है, इस्लाम औरत के खिलाफ नहीं है बलके उनकी बेहतरी के लिए कुछ काएदे कानून बना ता है जो मर्द के लिए भी उतने ही ज़रोरी है जितने औरत के लिए, अब उस किताब को कई लोग अपनी ज़िन्दगी में उतार कर बेहतर ज़िन्दगी गुज़र ते हैं, और कई उस किताब की चुनींदा और जिन का मतलब बहुत बारीक है उस को ग़लत तरीके से पेश कर के अपना उल्लू सीधा करते हैं, जेसा के तालिबानों ने अपनी सात्ता की लालसा मैं और उस को हासिल कर ने के लिए अपने मतलब को जिहाद का नाम देकर इस्लाम को बदनाम कर दिए, जिस का खाम्यज़ा आज पूरी मुसलमान क़ोम उठा रही है, इस्लाम और को बे-पर्दा इसलिए नहीं करना चाहता के औरत मैं वोह ताक़त है जो मर्द में मैं नहीं है, पर शयेद औरत उस ताक़त को पहचान ना ही नहीं चाहती है, या पहचान कर भी , (शतुर मुर्घ ) की तरह,अपनी आंखे मुंध कर उस शिकारी हमले को देखना ही नहीं चाहती है, तालिबानी फरमान में औरत को बुर्का पहनना लाजिम है, इंडोनेशिया में औरतों के तंग कपड़ों की जगह उन को ढीले कपडे पहनाने के लिए हिदायत दी जा रही है, और दुनिया के कई मुल्क ऐसे है जहाँ अब औरतों को तंग कपडे पहने से मना करा जा रहा है, औरतें इस के खिलाफ हैं की उनकी आजादी छीनी जा रही है, चाहे वोह मुसलमान हो या अब हिन्दू, क्यों की हिन्दुस्तान भी अब इस भगवा तालिबानी फरमान से अछूता नहीं रहा है, बजरंग दल ने कह दिया है की हिन्दू लड़कियां तंग या जिस्म देखने वाले कपडे न पहने.....लिखने के लिए बहुत कुछ है पर मजबूर हूँ ...क्या सिर्फ कुरान ही कहता है की औरतों को परदे में रहने रखा जाये ?